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Atlantis Series (8 books) | Shivendra Suryavanshi || अटलांटिस शृंखला | शिवेंद्र सूर्यवंशी 

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हिमालय की गुफाओं से निकलकर, अटलांटिस की धरती के रहस्यों की परतों को खोलने वाली, देवताओं के द्वारा रची गयी ऐसी महागाथा, जिसे आप बार बार पढना चाहेंगे। यह कहानी है सन राइजिंग नामक एक ऐसे पानी के जहाज की जो किसी कारणवश रास्ता भटक कर बरमूडा ट्रायंगल के खतरनाक क्षेत्र में फंस जाता है। कहानी के कुछ पात्र भयानक मुसीबतों से जूझते हुए अटलांटिस की धरती पर पहुंच जाते हैं जहां पर उनका इंतजार कर रहा होता है इस ब्रम्हांड का सबसे बड़ा तिलिस्म। 28 दरवाजे वाले इस तिलिस्म में मौजूद हैं – सप्ततत्व, 12 राशियां, ग्रीक गॉड, रोमन योद्धा, ब्रह्मांड के सबसे खतरनाक जीव, अनोखे ग्रह, और विज्ञान की अनोखी दुनिया। दोस्तों ‘रिंग आफ अटलांटिस‘ सीरीज की ये पहली पुस्तक है। आशा करता हूं कि यह पुस्तक आपको अवश्य पसंद आयेगी। “अटलांटिस: देवताओं की वह धरती जिसका जिक्र प्लेटो ने अपनी किताब में किया था। कहते हैं अटलांटिस का विज्ञान आज के विज्ञान से हजारों गुना ज्यादा बेहतर था। पर एक दिन धरती के जोर से हिलने की वजह से पूरी अटलांटिस सभ्यता कहीं सागर में समा गई। तब से लेकर आज तक वैज्ञानिक, आर्कियोलॉजिस्ट उस सभ्यता को ढूंढने का प्रयत्न कर रहे हैं। प्राक्कथनः ब्रह्माण्ड में स्थित अरबों आकाशगंगाओं में तैरते असंख्य ग्रहों में से एक ग्रह है पृथ्वी। पृथ्वी-जीवन से परिपूर्ण और रहस्यों से भरपूर। पृथ्वी की सबसे श्रेष्ठतम रचना है – मानव। मानव जिसके पास है एक अतिविकसित मस्तिष्क। यही मस्तिष्क इसे पृथ्वी पर रहने वाले करोड़ों जीवों से श्रेष्ठ बनाता है। इसी विकसित मस्तिष्क के कारण आज वह हर पल विकास के नये आयामों को स्पर्श कर रहा है। विज्ञान मन्थर गति से धीरे धीरे अपने कदम बढ़ा रहा है। विकास की नयी आधारशिला तैयार हो रही है। वह मानव जो कभी पेड़ों और गुफाओं में रहता था, आज अपने अतिविकसित मस्तिष्क के कारण अंतरिक्ष में निकलकर, अन्य ग्रहों की तरफ जीवनरूपी पदचिन्हों को तलाश रहा है। प्रक्षेपास्त्र, लेजर व परमाणु बम बनाने वाले हाथ अब मानव क्लोनिंग कर, अंतरिक्ष में स्पेस सिटी बनाने का सपना देख, ईश्वरीय शक्ति को भी चुनौती प्रदान करने लगा है। उसका मानना है कि अब वो पहले से अधिक विकसित है। परन्तु क्या यह सत्य है? इसका उत्तर तो सिर्फ अतीत की काली चादर में लिपटा कहीं गहराइयों मे दफन है। वह रहस्य, सागर की अथाह गहराइयों में भी हो सकता है, या फिर अंतरिक्ष में फैली करोड़ों आकाशगंगाओं की अनंत गहराइयों में भी। रहस्य-एक ऐसा शब्द, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जगत का सार छिपा हुआ है। आज भी मानव निरंतर रहस्यों की खोज के पीछे भाग रहा है, फिर चाहे वह सपनों का रहस्य हो, या फिर पुनर्जन्म का। यह सभी रहस्य मानव को अपनी ओर आकर्षित करते रहें हैं। कालचक्र- जिसे हम समयचक्र भी कहते हैं, समय समय पर चेतावनी स्वरूप, विकास की अन्धी दौड़ में भाग रहे मानव को कुछ ऐसे प्रमाण दिखा देता है, जो आज भी मानव मस्तिष्क से परे है। मानव लाख कोशिशों के बाद भी जब उस रहस्य को समझने में नाकामयाब हो जाता है, तो वह उसे पराविज्ञान का नाम देकर अनसुलझे रहस्यों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है और उससे दूर हट जाता है। बारामूडा त्रिकोण इसका जीता जागता उदाहरण है। मिस्र में खड़े विशालकाय पिरामिड, ईस्टर द्वीप की दैत्याकार मूर्तियां, ओल्मेक सभ्यता, इंका सभ्यता, माया सभ्यता, तियुतीहुआकान व अटलांटिस द्वीप के मिले कुछ ध्वंशावशेष, नाज्का सभ्यता के रेखाचित्र और ना जाने कितने ऐसे प्रमाण हैं, जो आज भी अतीत के मानव अतिविकसित होने की कहानी कह रहें हैं। अब सवाल यह उठता है कि यदि अतीत का मानव इतना ही विकसित था, तो उसके नष्ट होने का कारण क्या था? कहीं उसके नष्ट होने का कारण उसका प्रकृति से खिलवाड़, या उसका अतिविकसित होना ही तो नहीं था? क्या विकास की ही अंतिम सीढ़ी विनाश है? यदि ऐसा ही है, तो क्या हम एक बार पुनः विनाश की ओर अपने कदम बढ़ा रहें हैं? इन सभी सवालों का उत्तर जानने के लिए हमें एक बार फिर से अतीत में जाना पड़ेगा। लेकिन क्या अतीत में जाना सम्भव है? क्या हम जिस टाइम मशीन की कल्पना इतने वर्षों से कर रहें हैं, वह सम्भव है? यदि नहीं, तो फिर कैसे इन रहस्यों से पर्दा उठ सकता है? आइये बैठकर विचार करते हैं। लेकिन विचार तो कोरी कल्पना मात्र होगी। तो फिर क्या करें? तो फिर आइये क्यों न इस शृंखला को ही पढ़ा जाए, शायद हमारे सवालों का जवाब इस शृंखला में ही कहीं मिल जाए ….।

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Description

अटलांटिस शृंखला

लेखक – शिवेंद्र सूर्यवंशी 

पृष्ठ : 2800

हिमालय की गुफाओं से निकलकर, अटलांटिस की धरती के रहस्यों की परतों को खोलने वाली, देवताओं के द्वारा रची गयी ऐसी महागाथा, जिसे आप बार बार पढना चाहेंगे। यह कहानी है सन राइजिंग नामक एक ऐसे पानी के जहाज की जो किसी कारणवश रास्ता भटक कर बरमूडा ट्रायंगल के खतरनाक क्षेत्र में फंस जाता है। कहानी के कुछ पात्र भयानक मुसीबतों से जूझते हुए अटलांटिस की धरती पर पहुंच जाते हैं जहां पर उनका इंतजार कर रहा होता है इस ब्रम्हांड का सबसे बड़ा तिलिस्म। 28 दरवाजे वाले इस तिलिस्म में मौजूद हैं – सप्ततत्व, 12 राशियां, ग्रीक गॉड, रोमन योद्धा, ब्रह्मांड के सबसे खतरनाक जीव, अनोखे ग्रह, और विज्ञान की अनोखी दुनिया। दोस्तों ‘रिंग आफ अटलांटिस‘ सीरीज की ये पहली पुस्तक है। आशा करता हूं कि यह पुस्तक आपको अवश्य पसंद आयेगी। “अटलांटिस: देवताओं की वह धरती जिसका जिक्र प्लेटो ने अपनी किताब में किया था। कहते हैं अटलांटिस का विज्ञान आज के विज्ञान से हजारों गुना ज्यादा बेहतर था। पर एक दिन धरती के जोर से हिलने की वजह से पूरी अटलांटिस सभ्यता कहीं सागर में समा गई। तब से लेकर आज तक वैज्ञानिक, आर्कियोलॉजिस्ट उस सभ्यता को ढूंढने का प्रयत्न कर रहे हैं। प्राक्कथनः ब्रह्माण्ड में स्थित अरबों आकाशगंगाओं में तैरते असंख्य ग्रहों में से एक ग्रह है पृथ्वी। पृथ्वी-जीवन से परिपूर्ण और रहस्यों से भरपूर। पृथ्वी की सबसे श्रेष्ठतम रचना है – मानव। मानव जिसके पास है एक अतिविकसित मस्तिष्क। यही मस्तिष्क इसे पृथ्वी पर रहने वाले करोड़ों जीवों से श्रेष्ठ बनाता है। इसी विकसित मस्तिष्क के कारण आज वह हर पल विकास के नये आयामों को स्पर्श कर रहा है। विज्ञान मन्थर गति से धीरे धीरे अपने कदम बढ़ा रहा है। विकास की नयी आधारशिला तैयार हो रही है। वह मानव जो कभी पेड़ों और गुफाओं में रहता था, आज अपने अतिविकसित मस्तिष्क के कारण अंतरिक्ष में निकलकर, अन्य ग्रहों की तरफ जीवनरूपी पदचिन्हों को तलाश रहा है। प्रक्षेपास्त्र, लेजर व परमाणु बम बनाने वाले हाथ अब मानव क्लोनिंग कर, अंतरिक्ष में स्पेस सिटी बनाने का सपना देख, ईश्वरीय शक्ति को भी चुनौती प्रदान करने लगा है। उसका मानना है कि अब वो पहले से अधिक विकसित है। परन्तु क्या यह सत्य है? इसका उत्तर तो सिर्फ अतीत की काली चादर में लिपटा कहीं गहराइयों मे दफन है। वह रहस्य, सागर की अथाह गहराइयों में भी हो सकता है, या फिर अंतरिक्ष में फैली करोड़ों आकाशगंगाओं की अनंत गहराइयों में भी। रहस्य-एक ऐसा शब्द, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड जगत का सार छिपा हुआ है। आज भी मानव निरंतर रहस्यों की खोज के पीछे भाग रहा है, फिर चाहे वह सपनों का रहस्य हो, या फिर पुनर्जन्म का। यह सभी रहस्य मानव को अपनी ओर आकर्षित करते रहें हैं। कालचक्र- जिसे हम समयचक्र भी कहते हैं, समय समय पर चेतावनी स्वरूप, विकास की अन्धी दौड़ में भाग रहे मानव को कुछ ऐसे प्रमाण दिखा देता है, जो आज भी मानव मस्तिष्क से परे है। मानव लाख कोशिशों के बाद भी जब उस रहस्य को समझने में नाकामयाब हो जाता है, तो वह उसे पराविज्ञान का नाम देकर अनसुलझे रहस्यों की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देता है और उससे दूर हट जाता है। बारामूडा त्रिकोण इसका जीता जागता उदाहरण है। मिस्र में खड़े विशालकाय पिरामिड, ईस्टर द्वीप की दैत्याकार मूर्तियां, ओल्मेक सभ्यता, इंका सभ्यता, माया सभ्यता, तियुतीहुआकान व अटलांटिस द्वीप के मिले कुछ ध्वंशावशेष, नाज्का सभ्यता के रेखाचित्र और ना जाने कितने ऐसे प्रमाण हैं, जो आज भी अतीत के मानव अतिविकसित होने की कहानी कह रहें हैं। अब सवाल यह उठता है कि यदि अतीत का मानव इतना ही विकसित था, तो उसके नष्ट होने का कारण क्या था? कहीं उसके नष्ट होने का कारण उसका प्रकृति से खिलवाड़, या उसका अतिविकसित होना ही तो नहीं था? क्या विकास की ही अंतिम सीढ़ी विनाश है? यदि ऐसा ही है, तो क्या हम एक बार पुनः विनाश की ओर अपने कदम बढ़ा रहें हैं? इन सभी सवालों का उत्तर जानने के लिए हमें एक बार फिर से अतीत में जाना पड़ेगा। लेकिन क्या अतीत में जाना सम्भव है? क्या हम जिस टाइम मशीन की कल्पना इतने वर्षों से कर रहें हैं, वह सम्भव है? यदि नहीं, तो फिर कैसे इन रहस्यों से पर्दा उठ सकता है? आइये बैठकर विचार करते हैं। लेकिन विचार तो कोरी कल्पना मात्र होगी। तो फिर क्या करें? तो फिर आइये क्यों न इस शृंखला को ही पढ़ा जाए, शायद हमारे सवालों का जवाब इस शृंखला में ही कहीं मिल जाए ….।

Additional information

Weight 0.35 kg
Dimensions 22 × 13 × 3 cm

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